बे सिर पैर की ख्वाहिशें - हिंदी कविता/ Be sir pair ki khawahishen - Hindi poem. बे सिर पैर की ख्वाहिशें बस इतनी सी थी आरजू , मुझे जब दर्द हो... आपके दिल में दस्तक हो। अगर रूठ जाऊं मैं, जमीं आसमां एक कर दे वो.. रिश्ते में कुछ ऐसी बात हो। मेरे उल्टे सीधे अल्फाजों में भी, बेइंतेहा प्यार ढूंढ़ ले जो.. ऐसी नज़रें मुझे इनायत हो। नाज़ नखरे और झगड़ों के बीच बारी जब साथ देने की आए.. तो दोनों ओर से उल्फत हो। आए थे जमाने में जुदा-जुदा लेकिन जब जाने की बात हो.. हम साथ - साथ रुखसत हो। (स्वरचित) :- तारा कुमारी (कैसी लगी आपको यह कविता?जरूर बताएं। यदि पसंद आए या कोई सुझाव हो तो कमेंट में लिखे। आपके सुझाव का हार्दिक स्वागत है।) More poems you may like:- 1) होली की खुमारी 2) खामोशियों में लिपटी चाहतें 3) अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर कविता 4) एक पड़ाव 5) फरेब 6) रिश्ते टूटे नहीं हैं 7) अगर वो नहीं तो क्या हुआ 8) थोड़ा और की चाह 9) जरूरी है