क्या जिक्र करूं मैं ( हिंदी कविता) / kya zikar karun main (Hindi poem)
क्या जिक्र करूं मैं
क्या जिक्र करूं मैं अपनी मुहब्बत का
जिस मुहब्बत को मुझसे मुहब्बत ही नहीं!
दिन - रात कसक में घुलता है मन मेरा
तमाम दुनियादारी की फिक्र है उसे,
जरूरी और जरूरत की लंबी फेहरिस्त में
बस एक मैं ही हूं, जो जरूरी नहीं।
क्या जिक्र करूं मैं अपनी मुहब्बत का
जिस मुहब्बत को मुझसे मुहब्बत ही नहीं।।
ख्वाब तो देखे बहुत-सी मुहब्बत को लेकर
पर किए ख्वाहिशों से ज्यादा समझौता मैंने।
इस मुहब्बत के सौदेबाजी में भी,
दो पल राहत के मेरे नसीब में नहीं।
क्या जिक्र करूं मैं अपनी मुहब्बत का
जिस मुहब्बत को मुझसे मुहब्बत ही नहीं।।
खुशी और गम सब राब्ता है मेरे उनसे,
उनकी हर गली का रास्ता है जुदा मुझसे,
उम्मीदों की नाव खेती, राह ताकती उनकी
लेकिन.. सबसे वास्ता है उनका,बस एक मुझसे ही नहीं।
क्या जिक्र करूं मैं अपनी मुहब्बत का
जिस मुहब्बत को मुझसे मुहब्बत ही नहीं।।
नहीं कर सकती बयां शब्दों से
क्या दिल पर मेरे गुजरती है,
जब उनकी बेरुखी शूल की तरह चुभती है,
आंखों से रिसते हैं वो जख्मों के लावा हैं,आंसू नहीं।
पिघला दे जो पत्थर को भी स्पर्श कर के
लेकिन हुई कोई हलचल उनके दिल में नहीं ।
क्या जिक्र करूं मैं अपनी मुहब्बत का
जिस मुहब्बत को मुझसे मुहब्बत ही नहीं।।
(स्वरचित)
:- तारा कुमारी
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Tara kumari
मैंने इस ब्लॉग / पत्रिका में हमारे आसपास घटित होने वाली कई घटनाक्रमों को चाहे उसमें ख़ुशी हो, दुख हो, उदासी हो, या हमें उत्साहित करतीं हों, दिल को छु लेने वाली उन घटनाओं को अपने शब्दों में पिरोया है. कुछ को कविताओं का रूप दिया है, तो कुछ को लघुकथाओं का | इसके साथ ही विविध-अभिव्यक्ति के अंतर्गत लेख,कहानियों,संस्मरण आदि को भी स्थान दिया है। यदि आप भी अपनी रचनाओं के द्वारा ' poetry in hindi' कविताओं के संकलन का हिस्सा बनना चाहते हैं या इच्छुक हैं तो आप सादर आमंत्रित हैं। (रचनाएं - कविता,लघुकथा,लेख,संस्मरण आदि किसी भी रूप में हो सकती हैं।) इससे संबंधित अधिक जानकारी के लिए पेज about us या contact us पर जाएं।
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