धरा / धरती /Dhara/Dharti (Earth) - A Hindi poem

धरा / धरती /Dhara / dharti/Earth - A hindi poem( हिंदी कविता)

Earth Dhara dharti 

धरा/धरती /पृथ्वी पर कविता

धरा,माता है
हम इनकी संतान
सर्वत्र हरियाली,है इसकी शान
विविधता है इसकी पहचान।

माटी के हैं कई रंग
वन और वन्य जीव हैं इनके अंग
सदा ही प्रेम दिया है धरा ने मानव को
पुलकित होती जैसे देख माता बच्चों को।

दात्री है धरा
पर हमने है क्या दिया?
सर्वदा ही उपभोग किया सुखों का
कभी न समझा मर्म, धरा के दुखों का।

स्वार्थ में अंधे होकर
हम वीरान कर रहे धरा को
हरियाली है श्रृंगार इसका
बना रहे बंजर इसको।

फैला कर प्रदूषण
माता के मातृत्व का
कर रहे हम दोहन
वक़्त रहते हम संभल जाएं..

धरा रूपी माता को 
निर्बाध वात्सल्य बरसाने दें,
तभी विश्व में होगी खुशियाली
समस्त जगत होगी स्वस्थ और निरोगी
और
 ये धरती भी होगी बलिहारी।

(स्वरचित)
:- तारा कुमारी
(कैसी लगी आपको यह कविता?जरूर बताएं। यदि पसंद आए तो मेरे उत्साहवर्धन हेतू अपना आशीर्वाद दें।और कोई सुझाव हो तो कमेंट में लिखे आपके सुझाव का हार्दिक स्वागत है। ) 

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August 19, 2020
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