नज़्म/ गज़ल/ कविता Nazam/ gazal/ poem


 Poetry in hindi - कविताओं का संकलन।

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Poem/ नज़्म/ग़ज़ल -

नज़्म गज़ल कविता

नागपुर(महाराष्ट्र) से हेमन्त गर्ग (हेमू) की कविताएं/नज़्म /ग़ज़ल -


First poem/नज़्म/ग़ज़ल

मोजिजे उसके,  यूँ खत्म ना हुए,
क्या जुल्म है, हम, तेरे ना हुए।। 

मोजिजे उसके, यूँ खत्म ना हुए,
क्या जुल्म है, कि हम, तेरे ना हुए।। 

पत्ते जो गए थे, पतझड़ में मेरे,
करूँ क्या,  सावन में, हरे ना हुए।। 

क्या जुल्म है, कि हम,  तेरे ना हुए।। 

जिनको रख के, छाती पे घूमता था, मैं
आज भी वो, मेरे ना हुए।। 

मोजिजे उसके, यूँ खत्म ना हुए,
क्या जुल्म है,कि हम, तेरे ना हुए।। 

फ़ासले बढ़ तो गए, ठीक है लेकिन यारों,
मुझको गम है, आज भी तुम, पराये ना हुए।। 

मोजिजे उसके, यूँ खत्म ना हुए,
क्या जुल्म है,कि हम, तेरे ना हुए।। 

गुरबत भरे वक़्त, इस मुसीबत में
ये गलत है, हम एक-दूजे के, सहारे ना हुए।। 

मोजिजे उसके, यूँ खत्म ना हुए,
क्या जुल्म है, कि, हम, तेरे ना हुए।। 

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Second Poem/ ग़ज़ल/नज़्म 

तूने पूछा नहीं, मैंने बोला नहीं।। 
उस कठिन बात को , दिल पे आघात को।। 


बस इसी बात पे, साथ चल भी दिये 
झूम के गा लिये, नींद आ भी गई।। 


कितना मुश्किल था, कोई करता नही, 
तूने कैसे किया, मैंने समझा नहीं।। 


उस कठिन बात को, दिल पे आघात को। 
तूने पूछा नहीं,मैंने बोला नहीं।। 

  
बस इसी बात से, मंजिले मिल गई 
मुश्किलें कट गई, बदलियाँ छट गई।। 

  
तूने पूछा नहीं, तूने बोला नहीं।।


ये जहर तो नही,  पर हाँ कम भी नहीं।। 
तूने कैसे पीया, मैंने समझा नहीं।।
  

उस कठिन बात को, दिल पे आघात को। 
तूने पूछा नहीं, मैंने बोला नहीं।। 

  
बस इसी बात पे, दिल बहल भी गया, 
साँस चल भी पड़ी, बात बन भी गई।। 

  
उस कठिन बात को, दिल पे आघात को। 
तूने पूछा नहीं, मैंने बोला नहीं।। 

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तीसरी नज़्म/ ग़ज़ल: 


देखती है हसीना, नज़र भर कर अक्सर।।
जानना चाहती है, वो भी तो अक्सर।। 

आँखे ही नहीं, कातिल
देखना भी कातिल, होता है, अक्सर।। 

जाने क्यों तन्हा मिलती है, 
साथ में सहेली, भी होती है, अक्सर।। 

मुस्कराना भी उसका ग़ज़ब कर गया है
अदायें भी, कातिल, होती है अक्सर।। 

बोलने की तो कोई जरूरत नहीं है
करती है बयां आंखे कहानी को अक्सर।। 

मुहब्बत को होना तो आसां बहुत है,
बयां फ़िर भी जाने ये होती नहीं है,
चुप्पी ही बेहतर होती है,अक्सर।। 

तुम्हें हम ना जाने,  हमें तुम ना जानो।।
तो बेहतर रहेगा,
रास आती नही है, मुहब्बत ये अक्सर।। 

देखती है हसीना, नज़र भर कर अक्सर।।
जानना चाहती है, वो भी तो अक्सर।। 

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चौथी नज़्म/ ग़ज़ल: 



मुहोब्बत सच्ची है मेरी कि 
तुमको भी मैंने अपने जैसा बनाया है।।
कि आये नहीं तुम और क्या सुन्दर, बहाना बनाया है।। 

तुमको किसी ने ग़लत बताया है,
किसी एक-दो मुहोब्बत ने, थोड़े ही हमको, शायर बनाया है।। 

रात को जगा-जगा कर 
बच्चों ने परेशां किया, इतना
की मुझे फ़िर से; अच्छा, बेटा बनाया है।। 

बुरा ना मानों तो एक बात कहूँ,
बस इसी बात ने मुझको, बुरा बनाया है।। 

शुक्रगुजार हूँ मैं, दुश्मनों का 
की साजिशों ने उनकी, हमको हुनरमंद बनाया है।।

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पांचवी नज़्म/ग़ज़ल: 


 हम उसके शहर से क्या आये,
उसने, संवरना छोड़ दिया।। 

जैसे सावन का मौसम है,
बस पत्तो ने, उगना छोड़ दिया।। 

मेरे लिये रोती बहुत है वो, बस उसकी आंखों ने 
बरसना छोड़ दिया।। 

बहुत याद आ रही है मेरी,
की उसने भूख में भी, दस्तरखान छोड़ दिया।। 

बहुत गिला है, किस्मत से उसको भी,
बस उसने , मंदिर जाना छोड़ दिया।। 

उसके ख्वाबों में, अब भी आता हूँ मैं,
बस उसने, बिछोना छोड़ दिया।। 

उसकी उदासी है गहरी इतनी, 
जैसे बादलों ने,  गरजना छोड़ दिया।। 

अब भी किसी को,अपना नही पाई है वो 
बस उसने, मुझे अपना कहना छोड़ दिया।। 

मुझे पता है वो अब भी, बहुत प्यार करती है,
मुझसे, बस उसने बताना छोड़ दिया।। 

हम उसके शहर से क्या आये,
उसने, संवरना छोड़ दिया।।

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Poet:- हेमन्त गर्ग "हेमू"
             नागपुर,महाराष्ट्र।

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January 20, 2022
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