प्रेम - तृष्णा /Prem - Trishna - A Hindi - poem


प्रेम - तृष्णा / Prem - Trishna :- A Hindi-poem

Prem - Trishna
 

     प्रेम - तृष्णा

शुष्क रेगिस्तान में 
शीतल प्रेम की एक बूंद की चाह
तपते अग्नि सी बंजर भूमि में 
ओस-सी प्रेम की एक बूंद की चाह
मृग तृष्णा सी प्रेम की तृष्णा
भटकते छटपटाते मन के भाव
आस देख दौड़ चला उस ओर
पास जाकर कुछ ना मिला
मिली तो बस तपती शब्दों की चुभन
मन को दुखाती कड़वाहट की तपन
बुझ ना पायी मन की तृष्णा
कैसी है ये व्यथा कैसी ये घुटन
पुष्प रूपी कोमल हृदय को
निराशा और वेदना, और घेर आई
प्रेम की चाह ये कहाँ ले आई?
दर्द के समंदर में गोते लगाते रहे
पर साहिल कभी नजर न आई..।

:-स्वरचित
(तारा कुमारी)




मैंने इस ब्लॉग / पत्रिका में हमारे आसपास घटित होने वाली कई घटनाक्रमों को चाहे उसमें ख़ुशी हो, दुख हो, उदासी हो, या हमें उत्साहित करतीं हों, दिल को छु लेने वाली उन घटनाओं को अपने शब्दों में पिरोया है. कुछ को कविताओं का रूप दिया है, तो कुछ को लघुकथाओं का | इसके साथ ही विविध-अभिव्यक्ति के अंतर्गत लेख,कहानियों,संस्मरण आदि को भी स्थान दिया है। यदि आप भी अपनी रचनाओं के द्वारा ' poetry in hindi' कविताओं के संकलन का हिस्सा बनना चाहते हैं या इच्छुक हैं तो आप सादर आमंत्रित हैं। (रचनाएं - कविता,लघुकथा,लेख,संस्मरण आदि किसी भी रूप में हो सकती हैं।) इससे संबंधित अधिक जानकारी के लिए पेज about us या contact us पर जाएं।

Heart broken poem
July 09, 2020
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