ना देख सका वो पीर
उसने उतना ही समझा मुझकोजितना उसने जाना खुदको
उसकी बेरूखी ने बंधन तोड़ दिये दिल के
एक तरफ आसमाँ रोया टूट के
एक तरफ हम रोये फूट के
देखा उसने आसमाँ की बारिश
देख सका ना आँखों का नीर
भीगा वो बरसात में झूमकर
मेरी आँखें रोई उसकी यादों को चूम कर
उसका तन भीगा पानी में
मेरा मन भीगा आंसुओं में
ना देख सका वो पीर
ना पोंछ सका वो नीर
उसने उतना ही समझा मुझे
जितना उसने जाना खुदको
उसने उतना ही देखा मुझको
जितना उसकी नजरों ने देखा मुझको..
(स्वरचित)
:-तारा कुमारी
Broken heart..nice written
ReplyDeleteThank you.
Deleteदेखा उसने भी सब कुछ, पर
ReplyDeleteकह कहाँ कुछ पाता वो...
रेगिस्ताँ में थी हीर खड़ी,
'चेनाब' कहाँ से लाता वो...
छोटी-मोटी कोई सड़क नहीं,
मीलों लंबी वो दूरी थी...
कैसे बतलाता हीर को अब,
राँझा की क्या 'मजबूरी' थी...
रूष्ट हो चुकी हीर ने अब
'कुछ सुनने से इनकार' किया,
लगी 'कोसने' राँझा को,
कि किस 'बैरी' से प्यार किया...
राँझा भी कहकर क्या करता,
दोषारोपण से 'आहत' था...
किस कारण दूरी वो आयी थी,
यह 'वैराग' किस कारण था...
- अंक आर्या
(तारा कुमारी 'जी' की रचना के उत्तर में एक छोटा सा फ़्रेश प्रत्योत्तर) �� �� ^_^
बहुत खूब..
Deleteबहुत सुन्दर 👌 👌
DeleteThank you.
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