आज फिर आंखें बरस गईं।(हिंदी कविता) Aaj phir aankhen baras gayin.(hindi poem)
आज फ़िर आंखें बरस गईं।
आज फिर आंखें बरस गईं
कुछ यूं,
उनके लिए नैना तरस गई।
पहुंच तो गया वो मेरी रूह तक
पर,
रूह की सिसकी ना पहुंची उस तक।
छुपा था अंदर एक समंदर कहीं
बेचैन संवेगों से विचलित होकर
नैनों के प्यालों से छलक गई
आज फिर आंखें बरस गईं।
समेटती रही उम्र भर
कभी खुद को,
कभी टूटे हृदय के चूरे को।
जोड़ती रही छोटे - बड़े टुकड़ों को
कभी हंस कर
कभी अश्रु धारा में
खुद को भिगोकर।
उससे ये भी ना देखा गया
टूटे तीखे नुकीले चूरे को
कुछ यूं,
अपने हाथों में मसला उसने
बची खुची निस्पंद अस्तित्व भी कराह गई
मन तो बिखरा सा था ही,
देह भी निष्प्राण हो गई।
आज एक जिंदगी,
फिर से वीरान हो गई।
:- तारा कुमारी
(निष्प्राण - उत्साहहीन,जड़
निस्पं द - स्तब्ध,स्थिर
अस्तित्व - सत्ता,मौजूदगी
वीरान - उजड़ा हुआ
संवेग - सुख या दुख की भावना,घबराहट)
( कैसी लगी आपको यह कविता?जरूर बताएं। यदि पसंद आए या कोई सुझाव हो तो कमेंट में लिखे। आपके सुझाव का हार्दिक स्वागत है।)
More poems you may like:-

Tara kumari
मैंने इस ब्लॉग / पत्रिका में हमारे आसपास घटित होने वाली कई घटनाक्रमों को चाहे उसमें ख़ुशी हो, दुख हो, उदासी हो, या हमें उत्साहित करतीं हों, दिल को छु लेने वाली उन घटनाओं को अपने शब्दों में पिरोया है. कुछ को कविताओं का रूप दिया है, तो कुछ को लघुकथाओं का | इसके साथ ही विविध-अभिव्यक्ति के अंतर्गत लेख,कहानियों,संस्मरण आदि को भी स्थान दिया है। यदि आप भी अपनी रचनाओं के द्वारा ' poetry in hindi' कविताओं के संकलन का हिस्सा बनना चाहते हैं या इच्छुक हैं तो आप सादर आमंत्रित हैं। (रचनाएं - कविता,लघुकथा,लेख,संस्मरण आदि किसी भी रूप में हो सकती हैं।) इससे संबंधित अधिक जानकारी के लिए पेज about us या contact us पर जाएं।
Related Posts
Heart broken poem
December 11, 2020
0
Comments
Post a Comment