ना देख सका वो पीर Na dekh saka wo pir - Hindi poem

Na dekh saka wo pir


ना देख सका वो पीर 

उसने उतना ही समझा मुझको
जितना उसने जाना खुदको
उसकी बेरूखी ने बंधन तोड़ दिये दिल के
एक तरफ आसमाँ रोया टूट के
एक तरफ हम रोये फूट  के
देखा उसने आसमाँ की बारिश
देख सका ना आँखों का नीर
भीगा वो बरसात में झूमकर
मेरी आँखें रोई उसकी यादों को चूम कर
उसका तन भीगा पानी में
मेरा मन भीगा आंसुओं में
ना देख सका वो पीर
ना पोंछ सका वो नीर
उसने उतना ही समझा मुझे
जितना उसने जाना खुदको
उसने उतना ही पहचाना मुझको
जितना उसकी नजरों ने देखा मुझको..

(स्वरचित)
:-तारा कुमारी

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मैंने इस ब्लॉग / पत्रिका में हमारे आसपास घटित होने वाली कई घटनाक्रमों को चाहे उसमें ख़ुशी हो, दुख हो, उदासी हो, या हमें उत्साहित करतीं हों, दिल को छु लेने वाली उन घटनाओं को अपने शब्दों में पिरोया है. कुछ को कविताओं का रूप दिया है, तो कुछ को लघुकथाओं का | इसके साथ ही विविध-अभिव्यक्ति के अंतर्गत लेख,कहानियों,संस्मरण आदि को भी स्थान दिया है। यदि आप भी अपनी रचनाओं के द्वारा ' poetry in hindi' कविताओं के संकलन का हिस्सा बनना चाहते हैं या इच्छुक हैं तो आप सादर आमंत्रित हैं। (रचनाएं - कविता,लघुकथा,लेख,संस्मरण आदि किसी भी रूप में हो सकती हैं।) इससे संबंधित अधिक जानकारी के लिए पेज about us या contact us पर जाएं।

Heart broken poem
June 09, 2020
5

Comments

  1. Broken heart..nice written

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  2. देखा उसने भी सब कुछ, पर
    कह कहाँ कुछ पाता वो...
    रेगिस्ताँ में थी हीर खड़ी,
    'चेनाब' कहाँ से लाता वो...

    छोटी-मोटी कोई सड़क नहीं,
    मीलों लंबी वो दूरी थी...
    कैसे बतलाता हीर को अब,
    राँझा की क्या 'मजबूरी' थी...

    रूष्ट हो चुकी हीर ने अब
    'कुछ सुनने से इनकार' किया,
    लगी 'कोसने' राँझा को,
    कि किस 'बैरी' से प्यार किया...

    राँझा भी कहकर क्या करता,
    दोषारोपण से 'आहत' था...
    किस कारण दूरी वो आयी थी,
    यह 'वैराग' किस कारण था...

    - अंक आर्या

    (तारा कुमारी 'जी' की रचना के उत्तर में एक छोटा सा फ़्रेश प्रत्योत्तर) �� �� ^_^

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