मातृ-दिवस
माँ जननी है, जन्मदात्री है
प्रेम की अविरल बहती समंदर है
दुखों को झेलती अडिग पर्वत है
स्नेह की वर्षा करती फुहार है
ना होती इस रिश्ते में मिलावट
ना होती कभी चेहरे में थकावट
होंठों में रहती हरदम दुआएँ
पूत हो जाए कपूत, ना होती कुमाता
माँ की आँखें थक कर बंद होती भले
पर सोते में भी होती फिक्रमंद
है माँ ही प्रथम शिक्षिका
है माँ ही प्रथम सखा
माँ तो है प्रेम की अनंत सरिता
कैसे व्यक्त करूँ मैं शब्दों में
नहीं समा सकती तुम
शब्दों के अर्थों में..
नहीं है मोहताज माँ का प्रेम
एक दिवस की,
हर दिन ही है मातृ-दिवस
ना देना कभी दुःख माँ को
आदर करो माँ का उम्रभर..
यहीं है स्वर्ग यही है धर्म
है मातृ-दिवस की भेंट यही |
(स्वरचित)
:- तारा कुमारी
यकीन
कहते थे साथ ना छोड़ेंगे हम
किताब की व्यथा
सूक्ष्म - शत्रु

Tara kumari
मैंने इस ब्लॉग / पत्रिका में हमारे आसपास घटित होने वाली कई घटनाक्रमों को चाहे उसमें ख़ुशी हो, दुख हो, उदासी हो, या हमें उत्साहित करतीं हों, दिल को छु लेने वाली उन घटनाओं को अपने शब्दों में पिरोया है. कुछ को कविताओं का रूप दिया है, तो कुछ को लघुकथाओं का | इसके साथ ही विविध-अभिव्यक्ति के अंतर्गत लेख,कहानियों,संस्मरण आदि को भी स्थान दिया है। यदि आप भी अपनी रचनाओं के द्वारा ' poetry in hindi' कविताओं के संकलन का हिस्सा बनना चाहते हैं या इच्छुक हैं तो आप सादर आमंत्रित हैं। (रचनाएं - कविता,लघुकथा,लेख,संस्मरण आदि किसी भी रूप में हो सकती हैं।) इससे संबंधित अधिक जानकारी के लिए पेज about us या contact us पर जाएं।
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May 10, 2020
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