कश्मकश / Kashmakash - हिंदी कविता(Hindi poem) (जिनके बारे हमें लगता है कि वो हमारा दर्द नहीं समझ सकते, हम उन्हें नजरअंदाज करते हैं। लेकिन हो सकता है वो उसी दर्द से गुजर रहे हों और उन्होंने कभी जताया ना हो।ऐसे में जब हम उन्हें ' तुम नहीं समझोगे ' जैसी बातें कहकर और दर्द दे जाते हैं तो वो चुपचाप सहना ही बेहतर मान लेते हैं। और हमें इस बात का एहसास तक नहीं हो पाता।) क्या आपने ऐसे परिस्थितियों का कभी सामना किया है?कुछ ऐसे ही आंतरिक संघर्षों और भावनाओं से ओतप्रोत ये छोटी सी कविता आपके समक्ष प्रस्तुत है:- कश्मकश एक कश्मकश इधर है एक कश्मकश उधर है। उसने तो अपने टूटते घरौंदे दिखा दिए हम ना दिखा सके अपना टूटता हुआ वजूद। जमाने के मखौल से छिपा रखा है अब तक वरना घरौंदा तो टूटा हुआ हमारा भी है। और वो सोचते हैं कि हमें अंदाजा ही नहीं घरौंदे के टूटने की कसक.. बरसों जिन हालातों को जीती आयी हूं उन्हीं में से चंद रोज गुजर कर वो हमें ही नासमझ और खुशनसीब कहते हैं। जिस दर्द में डूबी कश्ती का आईना हैं हम उसी पर सवार होकर नये सफर के अनुभव हमसे बांटते हैं वो। कहते है तुझे पता ही नहीं, इसलिए तुम समझत